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Friday, 10 April 2020

આજે સાંજે 7.16 વાગ્યે ઈન્ટરનેશનલ સ્પેસ સ્ટેશનને અમદાવાદમાંથી નરી આંખે જોઇ શકાશે

International space station can be seen from ahmedabad at 7.16 pm on 10th april

ઇન્ટરનેશનલ સ્પેસ સ્ટેશનને (ISS) આજે 10 એપ્રિલે સાંજે નરી આંખે નિહાળી શકાશે. અવકાશમાં તરતો મૂકાયેલો સૌથી વિશાળ માનવસર્જિત ઉપગ્રહ ISS અમદાવાદના આકાશમાંથી સાંજે 7.16 કલાકે પસાર થશે. આ નજારો 6 મિનિટ 32 સેકન્ડ સુધી નરી આંખે જોઇ શકાશે. ઉનાળામાં આકાશ દર્શનમાં મોટાભાગે કોઇ વિક્ષેપો સર્જાતા નથી. આ સ્થિતિમાં 10મીએ સાંજે વાદળો નહીં હોય તો ISSને જોવામાં સરળતા રહેશે.

ISSને પૃથ્વીનું એક ચક્કર કાપતા 93 મિનિટનો સમય લાગે છે
ફૂટબોલના મેદાન જેટલું કદ ધરાવતો ISS એક માત્ર એવો માનવસર્જિત ઉપગ્રહ છે કે જેના પર વૈજ્ઞાનિકો રહી શકે છે. ISSને પૃથ્વીનું એક ચક્કર કાપતા 93 મિનિટ જેટલો સમય લાગે છે. એટલે કે તે અંદાજિત દોઢ કલાકે પૃથ્વીનું એક ચક્કર પૂરું કરે છે. દરરોજે તે પૃથ્વી ફરતે 16 જેટલા ચક્કર કાપે છે. પૃથ્વી પરના દેશોની ભૌગોલિક સ્થિતિ મુજબ દર વખતે આપણા પરથી જ પસાર થાય તે જરૂરી નથી, એટલે તે દર વખતે નિહાળી શકાતો નથી. તેના સારા વ્યૂ માટે આગાહી કરવામાં આવે છે. જે મુજબ આ વખતે અમદાવાદ સહિતના રાજ્યમાંથી આજે સાંજે 7:16 વાગ્યે વાયવ્ય દિશામા 331 ડિગ્રીએ તેનો ઉદય થશે અને અગ્નિ દિશામાં 126 ડિગ્રીએ 7:22 વાગ્યે તેનો મોક્ષ થશે.
સામાન્ય રીતે પૃથ્વીની સપાટીથી 400થી 425 કિમી ઊંચાઇએ પરિભ્રમણ કરતો ISS 10મીએ આપણાથી વધુમાં વધુ 2314 કિમી અને ઓછામાં ઓછા 653 કિમીના અંતરેથી પસાર થશે. અમદાવાદ પરથી પસાર થનાર ISSમાં હાલ 3 અવકાશયાત્રીઓ છે. જેમાં યુએસએની જેસિકા મેર અને એન્ડ્રુ મોર્ગન અને રશિયાના ઓલેગ સ્ક્રિપોચકાનો સમાવેશ થાય છે.

Thursday, 9 April 2020

Starlink satellites trails over Ahmedabad on 24th evening.

#Starlink satellites trails over Ahmedabad on 14th evening.
Magnitude unknown.

Hopefully most will be visible. 

Sky is already very clear & pollution free.

Don't miss.

Watch towards South / Southwest between 7:45 to 8:45 pm.


Saturday, 22 February 2020

SPACE: शुक्र, बृहस्पति और नेपच्यून पर है नासा की नजर, जल्द करेगा ये बड़ी घोषणा

SPACE: शुक्र, बृहस्पति और नेपच्यून पर है नासा की नजर, जल्द करेगा ये बड़ी घोषणा
फाइल फोटो

नासा ने कहा इन चारों स्टडिज में से प्रत्येक नौ महीने के अध्ययन में विकसित और परिपक्व अवधारणाओं के लिए $3 मिलियन मिलेंगे. 

नासा (NASA) उन अध्ययनों की फंडिग कर रहा है. जिसका उद्देश्य शुक्र, बृहस्पति के चंद्रमा Io और नेपच्यून के अत्यधिक सक्रिय बर्फीले चंद्रमा ट्राइटन के बारे में ज्यादा जानकारी जुटाना है. 9 महीनों की कॉन्सेप्ट स्टडी के पूरा होने के बाद नासा इनमें से कुछ मिशनों पर आगे बढ़ने के अपने प्लान को रोक सकता है. अगले साल इसका फाइनल डिसिजन लिया जाएगा. हालांकि, वे अभी तक आधिकारिक मिशन नहीं हैं और कुछ को शायद आखिर में आगे बढ़ने के लिए भी नहीं चुना जाए.

नासा के विज्ञान मिशन निदेशालय के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस जुर्बुचेनन ने कहा, 'इन चयनित मिशनों के जरिये सौर मंडल के कुछ सबसे सक्रिय और जटिल तथ्यों के बारे में हमारी समझ को बदल सकता है.' 'इन खगोलीय पिंडों में से किसी एक को तलाशने से यह पता चल पाएगा कि ये कैसे और कहां से ब्रह्मांड में आए,' जुर्बुचेन ने कहा.

इन चार जांचों को नासा के डिस्कवरी प्रोग्राम के हिस्से के रूप में चुना गया था. कुछ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को रोमांचक ग्रह विज्ञान मिशनों को डिजाइन करने के लिए एक टीम का गठन करने के लिए भी आमंत्रित किया गया है. नासा ने कहा इन चारों स्टडिज में से प्रत्येक नौ महीने के अध्ययन में विकसित और परिपक्व अवधारणाओं के लिए $3 मिलियन मिलेंगे. आखिर में इन्हें एक कॉन्सेप्ट स्टडी रिपोर्ट के साथ सबमिट किया जाएगा. कॉन्सेप्ट स्टडी रिपोर्ट के मूल्यांकन के बाद नासा इससे जुड़े कुछ मिशन के बारे में सोचेगा.

Tuesday, 20 August 2019

चंद्रमा की कक्षा में दाखिल हुआ चंद्रयान-2, जानिए कैसा होगा आगे का रास्ता


NBT
श्रीहरिकोटा से लॉन्चिंग के 29 दिन बाद चंद्रयान-2 आज सुबह 9 बजकर 30 मिनट पर चांद की कक्षा में प्रवेश कर लिया है। इसी के साथ अंतरिक्ष में भारत को एक और बड़ी उपलब्धि हासिल हो गई है। आज से 18वें दिन यानी 7 सितंबर को रात 2.58 बजे चंद्रयान-2 चंद्रमा पर ऐतिहासिक उपस्थिति दर्ज करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बनने श्रीहरिकोटा में रहेंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मुताबिक, चंद्रयान-2 पर लगे दो मोटरों को सक्रिय करने से यह स्पेसक्राफ्ट चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया है। मंगलवार सुबह 11 बजे इसरो चेयरमैन के. सिवन प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसकी जानकारी देंगे।

कैसा है आगे का रास्ता

'चंद्रयान-2 के चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद इसरो कक्षा के अंदर स्पेसक्राफ्ट की दिशा में 5 बार (20, 21, 28 और 30 अगस्त तथा 1 सितंबर को) और परिवर्तन करेगा। इसके बाद यह चंद्रमा के ध्रुव के ऊपर से गुजरकर उसके सबसे करीब- 100 किलोमीटर की दूरी की अपनी अंतिम कक्षा में पहुंच जाएगा। इसके बाद विक्रम लैंडर 2 सितंबर को चंद्रयान-2 से अलग होकर चांद की सतह का रुख करेगा।

इससे पहले इसरो के पूर्व चीफ किरण कुमार ने बताया था कि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव 65 हजार किमी तक है जिसका मतलब है कि उस दूरी तक वह स्पेस बॉडी को खींच सकता है। 20 अगस्त को जब चंद्रयान-2 इसकी कक्षा से लगभग 150 किमी दूर था तो इसरो इसकी दिशा में बदलाव किया। इस दौरान इसरो ने चंद्रयान-2 को महत्वपूर्ण वेग प्रदान किया जिससे चंद्रयान-2 ने अपनी गति को कम करके दिशा में बदलाव करके चंद्रमा की कक्षा में आसानी से प्रवेश किया। 

चंद्रमा पर कब उतरेगा चंद्रयान 


इसके बाद विक्रम लैंडर 2 सितंबर को चंद्रयान-2 से अलग होकर चांद की सतह पर उतरेगा। बता दें कि चंद्रयान-2 के 7 सितंबर को चांद की सतह पर उतरने की उम्मीद है। सिवन ने बताया कि चंद्रमा की सतह पर 7 सितंबर 2019 को लैंडर से उतरने से पहले धरती से दो कमांड दिए जाएंगे, ताकि लैंडर की गति और दिशा सुधारी जा सके और वह धीरे से सतह पर उतरे। ऑर्बिटर और लैंडर में फिट कैमरे लैंडिंग जोन का रियल टाइम असेस्मेंट उपलब्ध कराएंगे। लैंडर का डाउनवर्ड लुकिंग कैमरा सतह को छूने से पहले इसका आकलन करेगा और अगर किसी तरह की बाधा हुई तो उसका पता लगाएगा। 

उतरने के बाद क्या करेगा 
धरती और चंद्रमा के बीच की दूरी लगभग 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है। चंद्रयान-2 में लैंडर-विक्रम और रोवर-प्रज्ञान चंद्रमा तक जाएंगे। चांद की सतह पर उतरने के 4 दिन पहले रोवर 'विक्रम' उतरने वाली जगह का मुआयना करना शुरू करेगा। लैंडर यान से डिबूस्ट होगा। 'विक्रम' सतह के और नजदीक पहुंचेगा। उतरने वाली जगह की स्कैनिंग शुरू हो जाएगी और फिर 6-8 सितंबर के बीच शुरू होगी लैंडिंग की प्रक्रिया। 

लैंडिंग के बाद 6 पहियो वाला प्रज्ञान रोवर विक्रम लैंडर से अलग हो जाएगा। इस प्रक्रिया में 4 घंटे का समय लगेगा। यह 1 सेमी प्रति सेकंड की गति से बाहर आएगा। 14 दिन यानी 1 लूनर डे के अपने जीवनकाल के दौरान रोवर 'प्रज्ञान' चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा। यह चांद की सतह की तस्वीरें और विश्लेषण योग्य डेटा इकट्ठा करेगा और इसे विक्रम या ऑर्बिटर के जरिए 15 मिनट में धरती को भेजेगा। 


प्रज्ञान का क्या होगा 

चांद की सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) 14 दिनों तक ऐक्टिव रहेंगे। रोवर प्रज्ञान चांद पर 500 मीटर (½ आधा किलोमीटर) तक घूम सकता है। यह सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है। रोवर सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है। इसकी कुल लाइफ 1 लूनर डे की है। जिसका मतलब पृथ्वी के लगभग 14 दिन होता है। 

Saturday, 19 August 2017

21મી ઑગસ્ટ આવતીકાલે 99 વર્ષ બાદ બનશે જોરદાર ખગોળીય ઘટના, નાસા કરશે લાઇવ પ્રસારણ

21મી ઑગસ્ટ એટલે કે આવતીકાલે સોમવારના રોજ દુનિયાભરના લોકો પૂર્ણ સૂર્યગ્રહણની ઘટનાને જોઇ શકશે. 21મી ઑગસ્ટ 2017ના રોજ સૂર્યગ્રહણનો ગજબનો સંયોગ બની રહ્યો છે. લગભગ 99 વર્ષ પછી એવો અવસર આવશે જ્યારે આ દિવસે અમેરિકન મહાદ્વીપમાં પૂર્ણ સૂર્યગ્રહણ દેખાશે. આ ખાસ ખગોળીય ઘટના માટે અંતરિક્ષ એજન્સી નાસા એ તેના માટે તૈયારી કરી લીધી છે. નાસા આ અવસર પર આ ઘટનાનું આખી દુનિયામાં લાઇવ પ્રસારણ કરશે.

21મી ઑગસ્ટના રોજ થનાર સંપૂર્ણ સૂર્યગ્રહણનું આની પહેલાં આટલા મોટાપાયે પર કવર કરાયું નહોતું. નાસા ગ્રહણના પહેલાં અને ગ્રહણ દરમ્યાન તમામ તસવીરો અને વીડિયોનું લાઇવ પ્રસારણ કરશે.
આ દિવસે થનાર સૂર્ય ગ્રહણ અમેરિકાના તમામ મુખ્ય વિસ્તારોમાં જોવા મળશે. આ ખગોળીય ઘટના યુરોપ, ઉત્તર-પૂર્વ એશિયા, ઉત્તર-પશ્ચિમ આફ્રિકા, પ્રશાંત એટલાન્ટિકના મોટાભાગના હિસ્સામાં જોવા મળશે. જ્યારે ભારતમાં સૂર્ય ગ્રહણ આંશિક રહેશે.
ગ્રહણનો કુલ સમય અંદાજે 5 કલાક 18 મિનિટનો રહેશે. જ્યારે પૂર્ણ સૂર્યગ્રહણનો કુલ સમય 3 કલાક અને 13 મિનિટ સુધીનો રહેશે. સૂર્ય અને પૃથ્વીની વચ્ચે જ્યારે ચંદ્રમાં આવી જાય છે ત્યારે સૂર્ય ગ્રહણ થાય છે.
1918 બાદ પહેલી વખત પહેલી વખત એવું બનશે કે જ્યારે અમેરિકન લોકો આ ઘટનાના સાક્ષી બનશે. આ ખાસ અવસર માટે નાસાએ અંદાજે 10થી વધુ સ્પેસક્રાફ્ટ, 3 એરક્રાફ્ટ, અને 50થી વધુ એર બલૂન લગાવીને આ ખગોળીય ઘટનાને કવર કરશે.

Thursday, 23 June 2016

20 satellites in 26 minutes! ISRO makes space history

ISRO ने 26 मिनट में लॉन्च किए रिकॉर्ड 20 सैटेलाइट, US-रूस के क्लब में शामिल




एक साथ 20 सैटेलाइट लॉन्च कर ISRO ने बुधवार को अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। सुबह 9.25 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से PSLV-C34 लॉन्च किया गया। 26 मिनट 30 सेकंड में सभी सैटेलाइट स्पेस में पहुंचा दिए गए। इससे पहले 2008 में इसरो ने एक साथ 10 सैटेलाइट लॉन्च किए थे। इस कारनामे के साथ ही भारत सिंगल मिशन में सबसे ज्यादा सैटेलाइट भेजने के अमेरिका-रूस के एलिट क्लब में शामिल हो गया है। अमेरिका ने 2013 में 29 और रूस ने 2014 में एक साथ 33 सैटेलाइट भेजे थे। मिशन में गूगल, अमेरिका, जर्मनी के भी सैटेलाइट...
- इसरो के नए मिशन में अर्थ की निगरानी करने वाला इंडियन स्पेस शटल कार्टोसैट-2 (725 KG) शामिल है।
- इसमें गूगल की कंपनी टेराबेला का अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट (स्काईसैट जेन2-1) भी है।
- इसरो अब तक 20 देशों के 57 सैटेलाइट लॉन्च कर चुका है।
- इसरो ने अपने स्टेटमेंट में कहा, "एक साथ 20 सैटेलाइट लॉन्च कर हमने लैंडमार्क बनाया है।"
- मोदी और नितिन गडकरी ने इसरो की कामयाब लॉन्चिंग के लिए बधाई दी है।
मोदी ने क्या कहा?
- एक बार में 20 सैटेलाइट! इसरो ने नए रिकॉर्ड बनाना जारी रखा है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए हमारे वैज्ञानिकों को दिल से बधाई। - @narendramodi
दुनिया का सबसे भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल
- अपनी 36th उड़ान के साथ पीएसएलवी दुनिया का सबसे भरोसेमंद सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल बन गया।
- 1993 से लेकर अब तक इसने 36 उड़ानों में कई भारतीय और 35 विदेशी सैटेलाइट स्पेस में पहुंचाए हैं। 
- इसमें 2008 में चंद्रयान-1 और 2014 में मार्स मिशन में मंगलयान की लॉन्चिंग शामिल है।
अमेरिका के 13 सैटेलाइट
- इस लॉन्चिंग में अमेरिका के कुल 13 सैटेलाइट हैं। इसमें गूगल के अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट का वजन 110 किलो है।
- स्काईसैट से अर्थ के हाई डेफिनेशन फोटो और वीडियो मिलेंगे।
- 3 सैटेलाइट भारत के हैं, जबकि 4 सैटेलाइट कनाडा, जर्मनी और इंडोनेशिया के हैं।
- पीएसएलवी के साथ स्पेस में भेजे जाने वाले 20 सैटेलाइट का कुल वजन 1288 किलोग्राम है।
- इन सैटेलाइट्स को 505 किलोमीटर की ऊंचाई पर ऑर्बिट में पहुंचाया गया है।
2008 में हुई थी 10 सैटेलाइट की लॉन्चिंग
- इससे पहले, इसरो ने सिंगल मिशन के तहत 2008 में एक बार में 10 सैटेलाइट लॉन्च किए थे। इसीलिए यह मिशन एक और नया रिकॉर्ड बनाया।
- कार्टोसैट-2 सैटेलाइट से भेजी जाने वाली फोटोज अर्बन, रूरल, वाटर डिस्ट्रीब्यूशन और दूसरी जरूरी कामों के लिए मददगार होंगी।
- चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी का 1.5 किलो वजनी 'सत्यभामासैट' ग्रीन हाउस गैसों की जानकारी जुटाएगा।
- वहीं, पुणे के इंस्टीट्यूट का 'स्वयं' हैम रेडियो कम्युनिटी के लिए मैजेस भेजेगा।
सैटेलाइट इंडस्ट्री में बढ़ रही हिस्सेदारी
- ग्लोबल सैटेलाइट मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है। अभी यह इंडस्ट्री 13 लाख करोड़ रुपए की है।
- इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 41 फीसदी की है। जबकि भारत की हिस्सेदारी 4 फीसदी से भी कम है।
- दुनिया की बाकी सैटेलाइट लॉन्चिंग एजेंसियों के मुकाबले इसरो की लॉन्चिंग 10 गुना सस्ती है।
- विदेशी सैटेलाइट की लॉन्चिंग इसरो की कंपनी एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड के जरिए होती है। 
- 1992 से 2014 के बीच एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन को 4408 करोड़ रुपए की कमाई हुई।
- इसरो सैटेलाइट लॉन्चिंग से अब तक 660 करोड़ रुपए की कमाई कर चुका है।

Monday, 23 May 2016

ISRO Takes A Giant Leap In Space Technology, Tests Homegrown Space Shuttle

http://umangspaceencyclopedia.blogspot.in/

India scripts history by launching its own homegrown RLV
India scripts history by launching its own homegrown RLV

IISRO entered history books with the launch of its winged reusable launch vehicle (RLV) in Sriharikota. The landmark launch can be considered to be another milestone in ISRO’s journey thus far. Though the US and Russia have launched reusable vehicles in the past, this is the first time India has done something of this sort via innovative means.

 
The indigenously devised shuttle has caught people’s attention as its capable of diminishing costs of launching rockets by nearly 10 times. This will help India in strengthening its foothold in the space launch industry and easily send more satellites into space.
 
Indian Space Research Organisation (ISRO) director Devi Prasad Karnik said, “We have successfully accomplished the RLV mission as a technology demonstrator. The lift-off was at 7.00 A.M. from the first launch pad here.”
 
ISRO demonstrated its space technology prowess with this launch and it’s the second grand achievement of the space agency within a short span of time since the Mars Mission. The mini-shuttle landed in the Bay of Bengal on its way back, about 500 Km from the coast. Overall, it completed a 10 minute flight at about 70 Km above Earth.
 
The successful mission has enhanced ISRO’s capabilities as it can now arrange data on hypersonic speed, autonomous landing and powered cruise flight with the use of air-breathing propulsion.
 
ISRO has utilised cutting edge technology to develop the vehicle and its been seen as a revolutionary step amongst the country’s space achievements. Till date, ISRO has used Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) and Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV) for putting satellites in various orbits. However, these have been termed as Expendable Launch Vehicles (ELVs) as they usually get burned once satellites are sent into space. This leads to the use of new rockets every time satellites are launched.
 
The RLV, as discussed earlier has been a major breakthrough in the country’s space program and we can also dream of sending Indian astronauts to space in the future.

Saturday, 21 May 2016

બુધ સૂર્ય સામેથી પસાર થતો સદીમાં ૧૩ વખત જ કેમ દેખાય?

બુધ સૂર્ય સામેથી પસાર થતો સદીમાં ૧૩ વખત જ કેમ દેખાય?
હમણાં ૯ મે૨૦૧૬ના દિવસે અખબારોમાં સતત સમાચાર આવ્યા કેમરક્યુરી સૂર્યની સામેથી પસાર થયો અને વિજ્ઞાાનીઓએ તેનો ખાસ અભ્યાસ કર્યો. કારણ કેઆ ઘટના સદીમાં માત્ર ૧૩ વખત જોવા મળે એવી દુર્લભ છે.  મરક્યુરી એટલે કે બુધનો ગ્રહ. છેલ્લે ૨૦૦૬માં બુધને સૂર્ય સામેથી પસાર થતો જોઈ શકાયો હતો. હવે પછી એ ૧૧ નવેમ્બર૨૦૧૯માં આ રીતે સૂર્ય સામેથી પસાર થતો દેખાશે અને ત્યારપછી ૨૦૩૨માં સૂર્ય આગળથી પસાર થતો જોવા મળશે. બુધ પણ આપણી પૃથ્વીની જેમ સૂર્ય ફરતે ગોળ આંટા ફરે છે. તો એ દર વર્ષે કેમ ન દેખાયઆ સવાલ જો મનમાં જાગતો હોય તો ચાલો સમજીએ કે કેમ આ ઘટના દર વર્ષે બનતી નથી.
પહેલાં એ સમજીએ કે ઘટના ખરેખર શું છે. આપણી પૃથ્વી સૂર્ય ફરતે ચક્કર કાપતી રહે છેતેને આપણે સૂર્યની પરિક્રમા કહીએ છીએ. બુધ ગ્રહ પણ સૂર્ય ફરતે ચક્કર કાપે છેપરિક્રમા કરે છે. બુધ સૂર્યની સૌથી નજીકનોઆપણી સૂર્યમાળાનો સૌથી પહેલો ગ્રહ છેબીજા નંબરે શુક્ર આવે છેપૃથ્વીનો નંબર ત્રીજો છે. સૂર્યથી આપણી પૃથ્વી ૯.૧૭ કરોડ કિલોમીટર દૂર છે અને બુધ સૂર્યથી માત્ર ૫.૭૯ કરોડ કિલોમીટર દૂર છે. એટલે ત્યાં કોઈપણ પદાર્થ ક્ષણવારમાં વરાળ બની જાય છે. સૂર્યની પરિક્રમા કરતો એ પૃથ્વી અને સૂર્યની વચ્ચે આવે ત્યારે આપણને તે સૂર્ય આગળથી પસાર થતો દેખાય છે.
 આપણી પૃથ્વીની પરિક્રમાના માર્ગને ક્ષિતિજની જેમ આડો ધારી લઈએ તો બુધનો રસ્તો ૭અંશના ત્રાંસમાં છે. એટલે દર નવેમ્બર અને મે મહિનામાં જ પૃથ્વીની ભ્રમણકક્ષા બુધની ભ્રમણકક્ષાને કાપે છે. આ સમયે બુધ પૃથ્વી અને સૂર્યની વચ્ચે આવી જાય તો આપણને જોવા મળે.
આવું દર વર્ષે બનતુ નથી. કારણ કે પૃથ્વીની સૂર્ય ફરતે પરિક્રમા ૩૬૫.૨૫ દિવસમાં પૂરી થાય છે. બુધ પૃથ્વીના માપના ૮૮ દિવસમાં પરિક્રમા પૂરી કરી લે છે. એટલે બંનેની ભ્રમણકક્ષા એકબીજાને કાપે છે એ જગ્યાએ પૃથ્વી આવે ત્યારે બુધ ક્યાંક બીજે હોય છે અને બુધ અહીં આવે તો પૃથ્વી ક્યાંક બીજે પહોંચી ગઈ હોય છે. સો વર્ષમાં માત્ર ૧૩ જ વખત બુધ સૂર્યની પરિક્રમા કરતો પૃથ્વીની પરિક્રમાના માર્ગને કાપે એ જગ્યાએ આવે તો પૃથ્વી પણ એ સમયે ત્યાં જ હોય અને આપણે પૃથ્વીવાસીઓ બુધના નાનકડા ટપકાંને સૂર્ય આગળથી પસાર થતું જોઈ શકીએ.


સૂર્યના આંખ આંજી દેતા અજવાળાને ચન્દ્ર જેવો આછો કરી દે એવા દૂરબીન શોધાયાં એ પછી જ બુધને આ રીતે જોવાનું શક્ય બન્યું છે. પૃથ્વી કરતાં બુધ ત્રીજા ભાગનો જ છે. એટલે સૂર્યની સામેથી પસાર થતી વખતે એ માંડ નજરે ચઢે એવું કાળું ટપકું જ દેખાય છે. કાળું ટપકું સૂર્ય આગળથી પસાર થતું જોવાનો શો લાભ એવો પ્રશ્ન મનમાં થતો હોય તો જાણી લો કે આવું જ ખગોળવિજ્ઞાાનીઓ પણ વિચારતા હતા, પરંતુ નાસાની જેટ પ્રોપલ્ઝન લેબોરેટરીના લીલે તવરનીર નામના નિષ્ણાતે કહ્યું કે,બુધની આસપાસ વાતાવરણ આમ દેખાતું નથી, પરંતુ એની આસપાસથી નીકળતાં સૂર્યનાં કિરણો એના વાતાવરણમાં ગળાઈને,રંગ બદલીને આવતા હશે. જો ધ્યાનથી એ કિરણોના તફાવતને જોઈ શકીએ તો બુધનું વાતાવરણ ખરેખર કયા વાયુઓનું બનેલું છે એ ખાતરીથી જાણી શકાય. એટલે વિજ્ઞાાનીઓ બુધ પસાર થતો હોય તો એની ઉપર નજર માંડી રાખે છે.

Sunday, 8 May 2016

आज सूर्य के सामने से गुजरेगा बुध: भारत में भी दिखेगा नजारा, साइंटिस्ट्स ने दी वॉर्निंग



इससे पहले बुध 2006 में सूर्य के सामने से गुजरा था। अगली बार यह नजारा भारत में 2032 में देखा जा सकेगा
आज बुध (मरकरी) सूर्य के सामने से गुजरेगा। साइंटिस्ट्स ने शाम 4.42 के बाद सूर्य के तरफ न देखने की वॉर्निंग दी है। इसको देखने पर आपकी आंखों पर बुरा असर पड़ सकता है। कई साइंटिस्ट्स इससे परमानेंट रोशनी खोने की बात भी कह रहे हैं। बता दें कि सूर्य के सामने से बुध के गुजरने की घटना 100 सालों में 13 बार होती है। बुध को सूर्य को क्रॉस करने में करीब साढ़े सात घंटे लगेंगे...
- चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के फिजिक्स डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर संदीप सहजपाल के मुताबिक, इसको देखने पर आंखों की रोशनी पर बुरा असर पड़ सकता है।
- सोमवार शाम 4 बजकर 42 मिनट से सूर्य अस्त होने तक में बुध के सूर्य के सामने से गुजरने (ट्रांजिट ऑफ मर्करी) का असर रहेगा। 

- डॉ. सहजपाल के मुताबिक, इस दौरान मर्करी सूरत के आगे से क्रॉस करेगा। मर्करी को सूरज के आगे से क्रॉस करने पर साढ़े सात घंटे लगेंगे लेकिन भारत में ये 4 बजकर 42 मिनट के बाद 7 बजकर 6 मिनट पर सूर्य अस्त होने तक असरदार रहेगा।

क्या है ट्रांजिट ऑफ मर्करी?
- सौरमंडल का सबसे छोटा प्लेनेट बुध के सूरज के आगे से क्रॉस करने को ट्रांसिट ऑफ मर्करी कहते हैं। 

- इस दौरान सूर्य के आगे काले रंग का छोटा सा धब्बा नजर आएगा।



खुली आंखों से देखना हो सकता है खतरनाक

- सूर्य के आगे से बुध के क्रॉस होते होने इससे एनर्जी निकलती है। इस एनर्जी को देखने पर हमारी आंखें सहन नही कर पाती। 

- इस एनर्जी की वजह से आंखों का रेटिना पूरी तरह डैमेज हो सकता है।

- आमतौर पर बीमारी या किसी चोट से डैमेज होने वाले रेटिना को ठीक किया जा सकता है। लेकिन ट्रांजिट ऑफ मर्करी से डैमेज रेटिना ठीक नहीं हो सकता।

- डॉ. संदीप सहजपाल के मुताबिक, इस घटना को केवल सोलर फिल्टर वाली दूरबीन से ही देखा जा सकता है। चश्मे से भी देखने पर बुरा असर पड़ सकता है।



अगली बार 2032 में दिखेगा ट्रांजिट ऑफ मर्करी

- भारत में 2032 में मई और नवंबर के महीने में ट्रांजिट ऑफ मर्करी देखा जा सकेगा। 

- भारत में इससे पहले 6 नवंबर 2006 को ट्रांजिट ऑफ मर्करी हुआ था। लेकिन नॉर्थईस्टर्न राज्यों में यह सूर्योदय के समय ही यह दिखा था। 

- अगला ट्रांजिट ऑफ मर्करी 11 नवंबर 2019 को होगा। लेकिन भारत में सूर्यास्त होने की वजह ये नहीं दिखेगा।

चश्मे से भी न देखें


- चंडीगढ़ के घटना पर फिल्टर नजर इस खगोलीय घटना को पीयू का फिजिक्स डिपार्टमेंट ऑब्जर्व करेगा। डॉ. संदीप सहजपाल बताते हैं कि इस घटना को देखने के लिए पीयू में इंतजाम किए गए हैं। साइंटिस्ट ऑब्जर्व करेंगे कि ट्रांजिट ऑफ मर्करी के समय कितनी एनर्जी निकलती है।

साइंटिस्ट्स के लिए क्या है मौका?
- बुध के सूर्य के सामने से गुजरने के दौरान साइंटिस्ट्स ये जानने की कोशिश करेंगे कि स्टार्स-प्लेनेट स्पेस में कैसे मूवमेंट करते हैं।

- नासा ने इसकी स्टडी के लिए 3 टेलिस्कोप लगाए हैं।

- नासा के प्रोग्राम मैनेजर लुई मेयो के मुताबिक, 'स्पेस में जब दो प्लेनेट या स्टार्स नजदीक आते हैं तो साइंटिस्ट्स काफी एक्साइटेड होते हैं। इससे हमें काफी कुछ जानने-समझने का मौका मिलेगा।'

- 'बुध के ट्रांजिट से वहां के एटमॉस्फियर को जानने में मदद मिलेगी।

क्या है बुध की खासियत
- नासा के मुताबिक, बेहद गर्म होने के चलते बुध में एटमॉस्फियर नहीं है। दूसरे शब्दों में ये भी कह सकते हैं कि बुध का वायुमंडल काफी पतला है। गैसें यहां रुक ही नहीं पातीं।
1631 में पहली बार लगा था पता
- बुध के सूर्य के सामने से निकलने का पहली बार पता 1631 में लगा था।

- इस घटना से एस्ट्रोनॉमर्स को बुध की सरफेस और धरती की सूर्य से दूरी का पता लगाने में मदद मिलती है।

- मेयो के मुताबिक, '1631 में जब पहली बार बुध का सूर्य के सामने से गुजरना देखा गया, उस वक्त आज की तुलना में काफी छोटे टेलिस्कोप थे। आज की टेक्नोलॉजी की मदद से बुध की ट्रांजिट से स्पेसक्राफ्ट और इन्स्ट्रूमेंट्स का टेस्ट किया जा सकेगा।'

- नासा के एक अन्य साइंटिस्ट डीन पेसनेल के मुताबिक, 'जब हम किसी बेहद चमकीली चीज के सामने कुछ देखते हैं तो वह धुंधली हो जाती है। चमकदार लाइट एक तरह की धुंध पैदा करती है। सूर्य के सामने आने पर बुध भी एकदम काला नजर आएगा। लेकिन हम इंस्ट्रूमेंट्स ऐसे सेट कर रहे हैं ताकि हम धुंध को कम कर सकें।'


Friday, 12 February 2016

એક સદી બાદ સાચી પડી આઈન્સ્ટાઈનની ભવિષ્યવાણી

એક સદી બાદ સાચી પડી આઈન્સ્ટાઈનની ભવિષ્યવાણી

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ખગોળવિજ્ઞાન જગત માટે ગુરુવારનો દિવસ ઐતિહાસિક રહ્યો હતો. ખગોળ વિજ્ઞાન જગતને ઉત્સાહિત કરી દેનારી એક ધોષણામાં વૈજ્ઞાનિકોએ કહ્યું કે અંતમાં તેમને ગુરુત્વાકર્ષણ તરંગોની શોધ કરી લીધી છે જેની એક સદી પહેલા આઈન્સ્ટાઈને ભવિષ્યવાણી કરી હતી.

આ તરંગોની શોધે ખગોળશાસ્ત્રીઓને ઉત્સાહથી ભરી દીધા છે. આ શોધને પરિણામે બ્રહ્માંડને સમજવા માટે નવા રસ્તા ખુલ્યા છે. આ તરંગો બ્રહ્માંડમાં વિશાળ ટક્કરોથી ઉત્પન્ન થયા હતાં. વૈજ્ઞાનિકોએ આ સફળતાને એ ક્ષણ સાથે જોડી જયારે ગેલેલીયોએ ગ્રહોને જોવા માટે દુરબીનનો સહારો લીધો હતો. 

પ્રધાનમંત્રી નરેન્દ્ર મોદીએ ગુરુત્વાકર્ષણ તરંગોની ઐતિહાસિક શોધ પર પ્રસન્નતા વ્યક્ત કરી અને ભારતીય વૈજ્ઞાનિકોની ભૂમિકાના વખાણ કર્યા હતાં. તેઓએ ટ્વીટ કર્યુ કે અત્યંત ગર્વ છે કે ભારતીય વૈજ્ઞાનિકો આ પડકારરૂપ શોધના નિમિત્તરૂપે મહત્વની ભૂમિકા ભજવી છે.